गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

काँपती आयी हूँ



बचपन से आज तक
सबको बचाती आयी हूँ
कभी किसी का घर बसाती
कभी किसी को जन्म देती आयी हूँ

आँचल में मेरे
अजब ताकत है
कभी लाल कभी आशिक को
ढाँपती आयी हूँ

साल में एक दिन
पूजते हैं सब मुझे
फिर भी हर खतरे से
मैं काँपती आयी हूँ

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

झोंका सा




वो आया मेरे जीवन में
झोंका सा
खुशनुमा

बदल गया सब कुछ

और फिर चला गया
झोंका सा

और मैं सोचती रही
झोंका सा

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

मैं हूँ नारी


मैं हूँ नारी

भीड़ में खड़ी रहती हूँ
कभी नहीं आती है मेरी बारी

कहते हैं सुंदर हूँ मैं
तभी होती मेरी सौदागरी

जो मुझे खाने का जी रखे
बस वही करे मेरी तरफदारी

एक चीज बनकर रह गयी
अब्बा की दुलारी

कौन दिलायेगा मुझे
मेरी हिस्सेदारी

मैं हूँ इक नारी

सोमवार, 6 अप्रैल 2009

पहला पन्ना


खाना खाने के बाद हम
बिस्तर पर लेटे हुए हैं
मैं थकी हुयी हूँ
वह जागा हुआ है
कुसकुसाहट सी है उसमें
लेकिन मैं सो चुकी हूँ
यही पहला पन्ना है